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“The Loom of Time” is a profound exploration of time, memory, and the human condition, inviting readers to reflect on their roles in the unfolding tapestry of history. The novel blurs the boundaries between reality and imagination, challenging conventional notions of authority, certainty, and truth. The narrative is marked by ambiguity and introspection, with the narrator’s journey revealing the hidden layers of existence and the complexity of human experience.

The story intertwines the personal and the philosophical, weaving together autobiographical elements with fiction. As the protagonist encounters various characters and scenarios, from Soviet collectivism to spiritual rebirth, he grapples with disillusionment, self-discovery, and the search for deeper meaning. The concept of the “loom of time” serves as a potent symbol for the interconnectedness of fate, time, and events.

Through its fragmented narrative, the novel challenges readers to consider how their actions and beliefs contribute to the broader weave of history, emphasizing the transformative power of understanding and empathy. The story’s themes resonate through its exploration of love, loss, and the haunting presence of the past, ultimately underscoring the cyclical nature of life, death, and rebirth.






The Gods have gone silent


This book “देवताओं का मौन (The Gods have gone silent)” is a philosophical journey into the very living heart of non-dual Vedanta. 

It traces the essence of Vedanta through the streets and crossings of modern India and engages with extraordinary living masters in trying to answer some of our most pressing spiritual questions such as:

  • What is this dwelling and who is this dweller.
  • How is the dweller to chalk his way to his being?
  • Who are the modern Rishis and how are we to become one?
  • If Truth cannot be acquired or learnt, then how can it be transmitted.


How do we know it, If it is the indescribable, undefinable, unutterable, unspeakable, incommunicable, ineffable; beyond words, beyond description, then by what and in what are we to seek its body.
 


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PRINTदेवताओं का मौन (THE GODS HAVE GONE SILENT) HINDI EDITION

Audiobook 

देवताओं का मौन 

JOURNEY INTO THE VERY HEART OF NONDUALISM

Read by Shaily Mudgal

A RadioTalkies Production


CONTENTS

भूमिका

Chapter 1  - देवताओं का मौन
Chapter 2  - 
वामन के तीन पद
Chapter 3  - 
क्वांटम मैकेनिक्स का स्क्रूड्राइवर
Chapter 4  - 
किसानों का सहज ज्ञान
Chapter 5  - 
भूतिया मंदिर
Chapter 6  - 
कल्कि अवतार
Chapter 7  - 
ज्ञानेश्वरी
Chapter 8  - 
मंदिर ब्रह्म का गीत है
Chapter 9  - 
स्वामी
Chapter 10  - 
भूतों का कॉनफेरेन्स
Chapter 11  - 
और प्रेम खिल उठा
Chapter 12  - 
वास और वासी का विवाह
Chapter 13  - 
एक था गृहस्थ और एक था सन्यासी
Chapter 14  - 
असली वशिष्ठ और विश्वामित्र हाज़िर हों
Chapter 15  - 
डेमोक्रेसी और परा-लोक सिद्धि
Chapter 16  - 
कौन है वो ऋषि
लेखक का परिचय     

 


Back Cover


वह क्या है जो हमारी दुनिया, हमारे जीवन को संचालित कर रहा है। वह कौनसी ऐसी सामाजिक और आध्यात्मिक समझ है जो आज हमारे वर्तमान स्थितियों को और भविष्य की संभावनाओं को रच रही है। क्या हम इसे जानते हैं! क्या हम इसे समझते हैं!

 

हमारा 'अस्तित्व', हमारी सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थितियों से उत्पन्न होता है। तो असलियत में उदारवादी लोकतंत्र, सांस्कृतिक निरपेक्षता और समाजवादी तकनीकी यूटोपिया का अस्तित्ववादी सत क्या है! और क्या हम आज मानव अस्तित्व को उसके मूल स्वरूप में अनुभव कर सकते हैं? और यह समझ और अद्वैतिक जन चेतना हमें कैसे संबोधित कर सकती है और यदि वह कर सकती है तो हम उसकी वाणी को, उसके शब्दों को, हमारी सीमित चेतना से कैसे समझ सकते हैं जो उसके अतीत में निहित है।

 

आधुनिक दुनिया और उसकी आत्म-समझ का भ्रम, अनिष्ट और पूर्ण विनाश का दस्तक, ऐसे कई सवालों से झूझता और हमारा दुनिया को समझने और देखने के नज़रिये को बदलता है ‘देवताओं का मौन’


Flap Matter

 

"देवताओं का मौन" एक आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई अद्वैत वेदांत के सजीव हृदय में उतरती एक दार्शनिक यात्रा है। आज हमारा आधुनिक अस्तित्व, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास के तथ्य-मूल्य के भेद की विस्मृति पर टिका है। यह पुस्तक हमारे कुछ सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करती है जैसे:

 

- यह आवास क्या है और यह निवासी जो उसमें वास करता है वह कौन है।

- निवासी अपने अस्तित्व के लिए अपना रास्ता किस शब्द, सोच और भावनाओं से तय कर सकता है।

- आधुनिक ऋषि कौन हैं और हम स्वयं अपने रचनात्मक प्रयोग से वह ऋषि कैसे हो सकते हैं।

- सत्य क्या है और यदि सत्य को सीखाया नहीं जा सकता, तो इसे किस स्वरूप में प्रसारित किया जा सकता है। यदि वह अवर्णनीय, अपरिभाष्य, अकथनीय है; शब्दों से परे, वर्णन से परे है, तो हम कैसे उसे जाने, हम किससे और कौनसे विज्ञान से उसके शरीर की तलाश करें।

 

आधुनिक मानव स्थिति और इस आधुनिकता के तनाव से उत्पन्न होने वाली विकृति से निपटने में हमारी अक्षमता के चलते, आध्यात्मिकता के हृदय को अनिष्ट और विनाश की ताकतों से कैसे सुरक्षित किया जा सकता है। यह आत्मकथात्मक विवेचन ऐसे कई सवालों पर प्रकाश डालता है।


   






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